न जाने किस कोने में चुप-चाप सी रहती है वो, बोलती तो है मगर कभी-कभी चुप सी हो जाती है वो, इस युग के लोगों ने उसे कोई अहमियत ही नहीं दी और न ही देना चाहती है क्यूंकि वो आपके क्लास को कम कर देती, आपके दर्जे और आपकी वैल्यू को कम कर देती है, कभी-कभी वो बहुत बोलती, बेइंतेहा बोलती है, क्यूंकि वो खुद को भारत में आज़ाद महसूस करती हैं मगर वो उस वक्त चुप हो जाती है जब ये अंग्रेजी आकर टिपिर-टिपिर करने लगती है , और खुद को बहुत महत्वपूर्ण बताती है. अब आप सोच रहें होंगे की आखिर वो कौन है तो जो अपने देश में आजाद होकर भी कैद हो जाती है. तो आपको बता देती हूँ कि वो कोई और नहीं बल्कि नहीं हमारी मात्र भाषा हिंदी है. जो अपना दर्द बयां कर रही हैं. हिंदी कैसे शर्मसार करती है-- आपने दर्द को बयां करते हुए हिंदी ने कुछ ये बताया कि हिंदी सच में बहुत अलग है उसकी सोच, उसकी सज्जा, उसकी अहमियत , उसके शब्द मगर ये कंपनी ये बड़े लोग, ये क्लास वाले लोग उसे नहीं समझ सकते, क्यों? क्यूंकि हिंदी में बोलना उन्हे अखरता है, हिंदी बोलन उनके स्टेटस को सूट नहीं करता, हिंदी उन्हें शर्मसार कर देती है. स...