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हिंदी का दर्द नहीं समझ सकता कोई

न जाने किस कोने में चुप-चाप सी रहती है वो, बोलती तो है मगर कभी-कभी चुप सी हो जाती है वो, इस युग के लोगों ने उसे कोई अहमियत ही नहीं दी और न ही देना चाहती है क्यूंकि वो आपके क्लास को कम कर देती, आपके दर्जे और आपकी वैल्यू को कम कर देती है, कभी-कभी वो बहुत बोलती, बेइंतेहा बोलती है, क्यूंकि वो खुद को भारत में आज़ाद महसूस करती हैं मगर वो उस वक्त चुप हो जाती है जब ये अंग्रेजी आकर टिपिर-टिपिर करने लगती है , और खुद को बहुत महत्वपूर्ण बताती है. अब आप सोच रहें होंगे की आखिर वो कौन है तो  जो अपने देश में आजाद होकर भी कैद हो जाती है. तो आपको बता देती हूँ कि वो कोई और नहीं बल्कि नहीं हमारी मात्र भाषा हिंदी है. जो अपना दर्द बयां कर रही  हैं. 

हिंदी कैसे शर्मसार करती है--

 आपने दर्द को बयां करते हुए हिंदी ने कुछ ये बताया कि हिंदी सच में बहुत अलग है उसकी सोच, उसकी सज्जा, उसकी अहमियत , उसके शब्द मगर ये कंपनी ये बड़े लोग, ये क्लास वाले लोग उसे नहीं समझ सकते, क्यों? क्यूंकि हिंदी में बोलना उन्हे अखरता है, हिंदी बोलन उनके स्टेटस को सूट नहीं करता, हिंदी उन्हें शर्मसार कर देती है. सिर्फ इसलिय क्यूंकि वो मात्र भाषा होकर भी अंतर राष्ट्रिय भाषा नहीं बन पाई.


हिंदी की तरक्की--

 भारत के इस युग में तरक्की तो हुई मगर हमारी मात्र भाषा हिंदी में कोई तरक्की नहीं दिखाई दे रही है. स्कूलों और कॉलेजों में हिंदी तो है, मगर छात्र-छात्राएं मतलब स्टूडेंट्स हिंदी बोलने में शर्म महसूस करते हैं और उन लोगों को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ते जो हिंदी मीडियम स्कूलों से आए होते हैं.


स्कूलों में हिंदी की अहमियत  --

 आज अभिभावक यानी  की पेरेंट्स भी अपने बच्चों का भविष्य संवारने के लिए उन्हें इंग्लिश मीडियम स्कूलों में दाख़िला कराती हैं मगर उन बच्चों का दाख़िला नहीं लिया जाता जिनके पेरेंट्स को इंग्लिश में बात करनी नहीं आती. ऐसे स्कूलों में बच्चों का इंटरव्यू नहीं माँ-बाप का इंटरव्यू लिया जाता है ताकि उन्हें शर्मसार किया जा सके. क्या ये इंग्लिश मीडियम वाले टीचर्स नहीं जानते की अगर माँ-बाप की क्वालिफिकेशन इतनी अच्छी होती तो वो एडमिशन करते ही क्यों. मगर नहीं ये क्लास वालें लोग हैं क्लास देखकर दाखिला लेते हैं. हिंदी को शर्मसार करती हैं.


हिंदी की नौकरी हुई शर्मसार --

 अब हिंदी जाती है नौकरी के  लिए तो सबसे पहला सवाल होता है, "फर्स्ट इंट्रोड्यूस फॉर योरसेल्फ़ इन इंग्लिश" लो कर दी न हिंदी को शर्मसार करने वाली बात. अगर आपने अपने बारें में खुद को इंट्रोड्यूस कर लिया तो नौकरी पक्की वरना आप जा सकते हैं . बेचारी हिंदी आजाद ख्यालों से निकली थी नौकरी की तलाश में मगर इस इंग्लिश ने उसे वहां भी अपनी नहीं चलने दी. बेचारी निराश होकर घर आ गयी. 


हिंदी की चाल चलन--

 http://aapkikhabar.com/17889/Can-not-understand-the-pain-of-Hindiअब बात आती हिंदी की  चाल-चलन में हिंदी में खांसना, छीकना, हँसना रोना भी अंग्रेजी के मुताबिक काफ़ी अलग है. कभी ग़ौर कीजिगा, अंग्रेज़ी बोलने वाले लोग छींकते भी हैं तो लगता है कि रेडियो जिंगल बजा और हिंदी वालों के छींकने पर जानमाल का नुकसान भले ही न हो, भूकंप के हल्के झटके ज़रूर महसूस किया जाता है. अंग्रेज़ी में कोई झूठ भी बोले तो सच लगता है. तभी तो फ़िल्म 'ब्लू अंब्रेला' में पंकज कपूर बड़ी मासूमियत से पूछते हैं, 'अंग्रेज़ी में भी कोई झूठ बोलता है क्या?' 

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