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Showing posts from April, 2021

मौत और आलोचना

मौत का फरिश्ता घूम रहा है शहर में, कब कौन आ जाए उसकी चपेट में। घरों में बैठ गए है सब इस खौफ़नाक मंज़र से, जान जानी है एक एक करके इस डर से।  ऐसे मंज़र में भी कुछ लोग मना रहे हैं किसी की मौत का जश्न,  अरे जब जाना है तुमको भी तो फिर कैसा है ये जश्न। जानती हुँ नहीं सुधरेंगे ये लोग, फिर इनको कुछ कहना ही है बेकार स्थिति ही इनकी दिमाग की जो हो गई है बेकार। नाराज़ तो खुदा सबसे ही है, फिर क्यों उठाते हो ऊँगली किसी और पर, वो सब देख रहा है अब तो देखों खुद का दामन को झाड़कर। शमशान और क़ब्रिस्तान आबाद हो रहे है धीरे-धीरे, ज़िंदा लोग शहर को खाली कर रहें है धीरे-धीरे। बचे कुछ दिन है अपने, लोगों की भलाई में संवार दो, खुदा का डर है अगर तो लोगों का बुरा करना छोड़ दो।

सोशल मीडिया पर भिन्न भिन्न प्रकार के प्रजाति

सोशल मीडिया इस क़दर आजकल लोगों की ज़िंदगी में शामिल हो चुकी है जिसका सबसे ज़्यादा असर ये देखा जा रहा है लोगों गुमराह होते जा रहे हैं, लोगों में नेगेटीव विचार इतने ज़्यादा पनपने लगे हैं कि वो खुद भी नेगेटिव होते जा रहे हैं और अपने सोशल मीडिया के ज़रिए भी कई लोगों की सोच को नेगेटिव कर रहें हैं। फिर चाहें वो व्यक्तिगत इंसान का मन हो या फिर किसी गलत खबरों का फैलना इन सबका असर लोगों में दिख रहा है। ये ऐसा शायद इसलिए भी हो रहा है क्योंकि या तो लोग इन्हें समझ नहीं पाते या फिर इनके पास कोई सुनने वाला है ही नही शायद अधिकतर लोग अपनी उस नेगेटिव सोच को सोशल मीडिया के ज़रिए कहते हैं। मैं ये नही कह रही कि वो लोग गलत है या फिर ऐसे लोगों को सोशल मीडिया पर नहीं होना चाहिए, लोगों की बातों से आप समझ सकते है कौन किन हालातों से गुज़र रहा है। इसलिए जरूरी है कि वक्त रहते सोशल मीडिया के बजाए उस इंसान की असल जिंदगी में कोई उससे बात करें, उसकी बातों को समझे और उसे उसकी उस नेगेटिव सोच से ओवरकम कर सकें उसके दिमाग में जो बातें अटक गई जो कि उसे नेगेटिव माइंड को बढ़ावा दे रही है उसे कंट्रोल कर सके। इससे पहले की