Skip to main content

india ki bari ayi h

@@@अब इंडिया कि बारी आई है @@@


सिंधू और साक्षी के जीतने के बाद ये तो साबित ही हो गया कि बेटियां  हर बुरे वक्त मे अपने घर कि इज़्ज़त बचाती है। रियो ओलंपिक्स मे 125 करोड़ भारतीय टीम मे से अभी तक किसी ने भी सेमी फाइनल ये जगह नहीं बनाइ है लेकिन सिंधू ने सेमिफाइनल मे अपनी जगह बनाई और साक्शी ने कांस्य पदक जीतकर देश का सर गर्व से ऊँचा कर दिया है। इन दोनों खिलाड़ियों के जीतने के बाद हर भारतीय  मे जोश कि लहर की दौड़ पड़ी है।  जहां हार कि वजह से लोगों मे निराशा थी वही अब खिलाड़ियो मे जीतने का जज़्बा पैदा हो गया है।
बेटियां हर बार अपने घर, अपने रिशतेदार, अपने समाज, और  देश कि इज़्ज़त बनती भी है  और बचाती भी है। साक्षी और सिंधू ने भी इस बार अपने देश कि इज़्ज़त बचाई है।
      

Comments

Popular posts from this blog

मीडिया संस्था की प्रक्रिया और उनसे जुड़े एम्प्लॉय के हालात

आज तक ना जाने क्यों मुझे मीडिया फील्ड की प्रक्रिया समझ ही नही आती है। इस फील्ड का जितना बोल बाला बाहर से दिखाई देता है उतना अंदर से नज़र क्यों नहीं आता। बाकी फील्ड के मुक़ाबले अगर मीडिया फील्ड की तुलना की जाए तो ये उतनी मुझे उतनी बेहतर नहीं दिखाई दी।  जहां शुरुआती दौर में कोई अन्य संगठन अपने न्यू एम्प्लॉय को बाकायदा अच्छी सैलरी के साथ अच्छी ट्रेनिंग प्रोवाइड कराता है वहीं मीडिया फील्ड अच्छी सैलेरी तो छोड़िए ट्रेनिंग के नाम पर उसे यूँही कंपनी में छोड़ दिया जाता है। अगर उस शख्स में काबिलियत है तो वो देखते दिखाते सीख सीखा जाता है और नही है तो उसका करियर इस फील्ड के लिए फिर तो बर्बाद समझो...अक्सर ज़्यादातर इस फील्ड से जुड़े लोग अपनी फील्ड बदल लेते है पता है क्यों ? क्योंकि उन्हें वो ट्रेनिंग नहीं दी जाती है जो दूसरी कंपनिया अपने एम्प्लॉय को प्रदान करती है। कुछ इस वजह से भी अपनी फील्ड बदल देते है क्योंकि जो उस काबिल होते है उन्हें उनकी मेहनत के अनुसार मेहनताना नहीं दिया जाता। इसलिए तंग आकर वो उस फील्ड में चले जाते जहां उनका मन तो नहीं होता मगर उनकी मेहनत अनुसार मेहनताना मिल ही जात...

Reality of Lucknow Hip Hop Rap scene

कहते हैं कलाकार की भूख अपनी कला का प्रदर्शन दिखाने के लिए इस क़दर उछाल मारती है जैसे एक बच्चा भूखे होने पर माँ के दूध के लिए तड़पता है। आज कई कलाकार हमें ऐसे देखने को मिलते है जिन्हें स्टेज नहीं मिलता है तो वो सड़कों पर निकलकर अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। इसमें वरुण दागर एक ऐसे उधारण हैं जो उन सभी उभरते हुए कलाकारों को प्रेरित करते है जिनके पास ना कोई AUDIENCE है और ना ही कोई संगीत उपकरण। ऐसा नहीं है कि वरुण दागर के पास कुछ है नहीं, उनके पास आडियन्स भी है उनके पास म्यूजिक उपकरण भी लेकिन सड़कों पर अपनी कला को प्रस्तुत करना उन्हें हर दिन एक कहानी, एक नए चैलेंज से रूबरू कराता है। आज हम उनके बारें में नहीं बल्कि लखनऊ म्यूजिक सीन के बारें में बात करेंगे।  बात पिछले साल की है जब मैंने अपना यूट्यूब चैनल शुरू किया जिसकी वजह थी बेरोज़गारी। हाँ मेरे पास कोई जॉब नहीं थी मैं बोर हो रही थी और मुझे चुल थी कुछ करने की। फिर कंटैंट की तलाश में मैंने लखनऊ की सड़कों पर ख़ाक मारना शुरू कर दिया। इसी कंटैंट की तलाश में मुझे पहली बार सड़क पर एक कलाकार बसकिंग करते हुए दिखा। जिसका नाम था यश अगरवाल, शायद बसकिंग क...