Skip to main content

मीडिया संस्था की प्रक्रिया और उनसे जुड़े एम्प्लॉय के हालात


आज तक ना जाने क्यों मुझे मीडिया फील्ड की प्रक्रिया समझ ही नही आती है। इस फील्ड का जितना बोल बाला बाहर से दिखाई देता है उतना अंदर से नज़र क्यों नहीं आता। बाकी फील्ड के मुक़ाबले अगर मीडिया फील्ड की तुलना की जाए तो ये उतनी मुझे उतनी बेहतर नहीं दिखाई दी। 
जहां शुरुआती दौर में कोई अन्य संगठन अपने न्यू एम्प्लॉय को बाकायदा अच्छी सैलरी के साथ अच्छी ट्रेनिंग प्रोवाइड कराता है वहीं मीडिया फील्ड अच्छी सैलेरी तो छोड़िए ट्रेनिंग के नाम पर उसे यूँही कंपनी में छोड़ दिया जाता है। अगर उस शख्स में काबिलियत है तो वो देखते दिखाते सीख सीखा जाता है और नही है तो उसका करियर इस फील्ड के लिए फिर तो बर्बाद समझो...अक्सर ज़्यादातर इस फील्ड से जुड़े लोग अपनी फील्ड बदल लेते है पता है क्यों ? क्योंकि उन्हें वो ट्रेनिंग नहीं दी जाती है जो दूसरी कंपनिया अपने एम्प्लॉय को प्रदान करती है। कुछ इस वजह से भी अपनी फील्ड बदल देते है क्योंकि जो उस काबिल होते है उन्हें उनकी मेहनत के अनुसार मेहनताना नहीं दिया जाता। इसलिए तंग आकर वो उस फील्ड में चले जाते जहां उनका मन तो नहीं होता मगर उनकी मेहनत अनुसार मेहनताना मिल ही जाता है। 

कुछ बेचारे ऐसे है जो इस फील्ड में काम किये जा रहें भले ही सालों तक काम करते रहें  मगर तनख्वाह उनकी उतनी की उतनी ही फिर चाहे ये कितना भी अच्छा काम करके दिखा दे। अब ये बेचारे कही जा भी नही सकते क्योंकि इनका कही किसी और काम मे दिल ही नहीं लगता ,,,, वो कहते हैं ना कि पत्रकारिता एक ऐसा कीड़ा है जो निकाले नहीं निकलता,,। 

हर एक राइटर के साथ हमेशा यही ही होता ही होगा जब वो वो अपने लिखने के हुनर को त्याग देता है होगा तो वो हुनर भले ही कुछ समय के लिए लोगों की नज़रों से दूर हो जाए मगर जब भी वो राइटर अपने लेखन को दोबारा से शुरू करता है तो वो पहले से और भी बेहतर बन जाता है क्योंकि ये उस राइटर का हुनर है जो ना लिखने पर खत्म नहीं बल्कि और भी बेहतर बन जाती है। 

मेरी साथ आज जो वाक़्या हुआ वो कुछ ऐसा ही हुआ। जब एक संपादक ने मुझे ये कहा कि आपकी दिलचस्पी खबरों में नहीं है इसलिए आपने अपनी फील्ड चेंज की,, मुझे उनकी ये बात सुनकर बुरा नही लगा मगर मुझे मन ही मन बहुत हसीं आई और सिर्फ इतना कहा कि दिलचस्पी ना होती तो यहां ना होती। हां मैंने खबरों से दूरिया ज़रूर बनाई मगर लिखने का हुनर उस वक़्त से रहा जब मैंने इस फील्ड में कदम भी नहीं रखा था। 

बात सिर्फ इतनी नहीं थी बल्कि ये भी थी कि अगर मैं उनकी संस्था को जॉइन करती हूँ और किसी कारण वश आगे चलकर अगर उनकी संस्था छोड़ देती हूं तो वो मुझे लखनऊ में कहीं काम नहीं करने देंगे। ये बात काफी धमकी जैसा साउंड किया मगर मुझे सुनकर बड़ी ख़ुशी हुई कि शायद मैं आज उस मुक़ाम पे हुँ जहां मुझे चैलेंज भी किया जा सकता है। 

मुझे उनका ये धमकी भरा चैलेंज बहुत ज़बरदस्त लगा ख्याल तो आया कि कह दूं ' आप तनख्वाह बढ़ाते रहिये फिर छोड़ने की नौबत ही नही आएगी। उस वक़्त अपनी हंसी को छुपाते हुए चुप रही कि कही मेरे जवाब सुनते ही वो मुझे ऑफिस से बाहर ना फिकवा दे🤣। 








Comments

Popular posts from this blog

Reality of Lucknow Hip Hop Rap scene

कहते हैं कलाकार की भूख अपनी कला का प्रदर्शन दिखाने के लिए इस क़दर उछाल मारती है जैसे एक बच्चा भूखे होने पर माँ के दूध के लिए तड़पता है। आज कई कलाकार हमें ऐसे देखने को मिलते है जिन्हें स्टेज नहीं मिलता है तो वो सड़कों पर निकलकर अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। इसमें वरुण दागर एक ऐसे उधारण हैं जो उन सभी उभरते हुए कलाकारों को प्रेरित करते है जिनके पास ना कोई AUDIENCE है और ना ही कोई संगीत उपकरण। ऐसा नहीं है कि वरुण दागर के पास कुछ है नहीं, उनके पास आडियन्स भी है उनके पास म्यूजिक उपकरण भी लेकिन सड़कों पर अपनी कला को प्रस्तुत करना उन्हें हर दिन एक कहानी, एक नए चैलेंज से रूबरू कराता है। आज हम उनके बारें में नहीं बल्कि लखनऊ म्यूजिक सीन के बारें में बात करेंगे।  बात पिछले साल की है जब मैंने अपना यूट्यूब चैनल शुरू किया जिसकी वजह थी बेरोज़गारी। हाँ मेरे पास कोई जॉब नहीं थी मैं बोर हो रही थी और मुझे चुल थी कुछ करने की। फिर कंटैंट की तलाश में मैंने लखनऊ की सड़कों पर ख़ाक मारना शुरू कर दिया। इसी कंटैंट की तलाश में मुझे पहली बार सड़क पर एक कलाकार बसकिंग करते हुए दिखा। जिसका नाम था यश अगरवाल, शायद बसकिंग का उस

how parents to prepare our girl for marriage

mujhe samjh nahi ata ki parents aksar ladkiyo ke liye itna pareshan kyu rahte hai specially tab jb wo us age me ati hai ki use duniya samjhni shuru hi ki hoti hai, jaha use duniya dekhne ki umar hoti hai, azad hoker fizao me chillane ka mann karta waha use rishton me bandhne ki baat kyu krne lgte hai. Ldkiyo ko shadi ke liye aise taiyar kiya jata hai jaise ki sb kuch shadi hi ho. Rishte ke liye photos to aise aise dikhaye jate hai jaise ki uske liye ladke nhi bus murgi halal karne ke liye ek kasai chahiye. Fir agar koi ladki ldke ko reject krti hai to uspe ungliyan uthani shuru ho jati hai, use ye ehsas dilaya jata hai ki sb kuch life me perfect nahi milta kuch na kuch to sacrifice karna hi padta hai. Mujhe samjh nhi aata why always girls sacrifice her dream her opinion her way of styles. Ye sare sacrifices ke tabu ladko pe kyu nahi lagte unhen kyu nahi sikhaya ya btaya jata hai ki sacrifice wo bhi kr skte hai. I know har koi perfect nhi hota hame perfect banana pdta hai bt my question

Friend with Benefit

Sunne me kitna negative lagta hai naa or excitement bhi mgr kya hota hai is friend with benefit ka real meaning. Maine friend with benefit ko samjhane ki kafi koshish ki magar mujhe abtk samjh nhi aaya ki friend with benefit hai kya. Khair mere liye friend Wahi hai jo apki hr acche bure me sath me gussa aye to gussa dikha le, gali dene ka mann h to gariya le, hasne ka dil kare to has le, na hasne ka dil kare to ro le jo chahe kare bus bkchodi krña kbhi na kam kare or sabse khas bat in sabke sath us dost ke liye feelings hona zaruri hai.  Aajkal kisi dost ke liye ya kisi partner ke liye shayad hi feelings dekhne ko mile qki hamare aas pas sirf or sirf jhute log hai jhuti Vibes ya fir yu kah le ki dikhawe ki dosti, dikhawe ka pyr, dikhawe ka rahan sahan sb kuch dikhawa sirf isliye taki hmara ek alg hi status logo ke bich dekhne ko mile. Kuch log is attitude ko cool bhi samjhte hai magar mujhe is dikhawe or jhute rishton ke piche hamesha hi compromise, agreement ya fir mjburi jaisi feelin