आज
मै किसी काम से पुराने लखनऊ कि तरफ़ चल पड़ी और फिर कुछ देर पैदल चली रास्ते
मे एक छोटा बच्चा मिला वो अपनी मौज मस्ती मे सड़क के किनारे चला जा रहा था।
हम लोगे ने उस बच्चे को मज़ाक मे डराने लगे कि "रुको
अकेले जा रहे हो ना, तुमको पकड़ के घर ले चलते है" वो थोड़ा सा डरके आगे बढ़
जाता है और फिर वो सड़क को क्रॅास करने लगता है। मगर वो बहुत ही छोटा था और
गाड़ियो को बिना देखे आगे बढ़ने लगा , फिर मैने उसका हाथ पकड़कर उसे सड़क पार
कराया ,ये सोचकर कि कही कोई दुर्घटना न हो जाए। जब मैने उसे सड़क पार करा
दिया तो बच्चा मुस्कुरा कर मेरी तरफ़ देखा और फिर मै भी मुस्कुरा कर आगे कि
तरफ़ चल पड़ी ।
कुछ दुर आगे चली ही थी कि एक और छोटा बच्चा मिला बोला भूक लगी कुछ पैसे दे दो , हम लोग के पास अंगूर थे तो हमलोग ने उसे खाने के लिये अंगूर दे दिये । उस समय ये एहसास हुआ कि सरकार अगर फालतू के मुददो पे बहस करने के बजाए इन भूखे बच्चो के बारे मे कुछ सोचती तो शायद ये भूखे बच्चे सड़क पे भीख न मांग रहे होते और आज इस देश मे कोई बचचो से भीख न मगवाता।
कुछ दुर आगे चली ही थी कि एक और छोटा बच्चा मिला बोला भूक लगी कुछ पैसे दे दो , हम लोग के पास अंगूर थे तो हमलोग ने उसे खाने के लिये अंगूर दे दिये । उस समय ये एहसास हुआ कि सरकार अगर फालतू के मुददो पे बहस करने के बजाए इन भूखे बच्चो के बारे मे कुछ सोचती तो शायद ये भूखे बच्चे सड़क पे भीख न मांग रहे होते और आज इस देश मे कोई बचचो से भीख न मगवाता।
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