" ग़लत हुआ फिर वो ग़लत कहलाई गई"
मैं जब भी उदास होती हूँ तो रो लेती हूँ या फिर लिख लेती है. मन तो काफी दिनों से उदास है पर आज लिखने का दिल का कर रहा है. अपने मन में भरे हुए जज़्बातों को अब अपने अंदर समेट नहीं पा रही हूं,,....
जज़्बात तो मन में बहुत है मगर उन जज़्बातों के साथ सवाल भी उससे कहीं ज़्यादा हैं। दिल में भरे एहसास के सैलाबों को आज मैं अपने अल्फ़ाज़ों से बयां बकर दूंगी। आज सिर्फ़ अपने ज़ज़्बात ही बयां करुँगी सवाल किसी और दिन करुँगी।
एक लड़की जब मोहब्बत के नाम से अनजान होती हैं तब ये इस दुनिया के कुछ नामर्द ऐसे होते हैं जो मोहब्बत से अनजान उस लड़की को ये बताते हैं की मोहब्बत क्या है? मोहब्बत कैसे की जाती है? मोहब्बत क्यों की जाती है? मगर जब वहीं लड़की मोहब्बत का सबक़ सीख जाती है उसे ये एतबार दिला दिया जाता है कि मोहब्बत ही सबकुछ है तो क्यों फिर एक मुक़ाम ऐसा आता है जब वही शख़्स (जिसने मोहब्बत के क़सीदे और सबक सिखाए) उसके एतबार को इस तरह से तोड़ता है कि फिर वो एतबार लफ्ज़ को भूल जाती है. उस लड़की का एतबार तो टूट जाता है मगर उम्मीद नहीं क्यों क्योंकि उसे लोगों ने ये भी सिखाया कि इस दुनिया में 'सब एक जैसे नहीं होते' उपर वाले ने हर इंसान को एक जैसा नहीं बनाया है.
इसी उम्मीद के सहारे वो आगे बढ़ती है ज़िन्दगी को फिर से जीने के लिए एक नई शुरुआत के लिए, नए लोगों के साथ, नए रिश्तों के साथ, सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा होता है. बहुत खुश रहती है वो अपनी इस ज़िन्दगी से और फिर कुछ महीनों बाद एक दिन फिर उसका वो एतबार टूट जाता है. फिर एक बार वो टूट जाती है. खुद को बहुत तकलीफ देती है, कई दिनों तक यूँही खुद को कोसती है कि क्यों उसने फिरसे से किसी की बातों का यकींन किया। अब वो मोहब्बत की मारी लड़की बहुत तन्हा और अकेली हो चुकी है, कोई है नहीं जिससे वो अपना दर्द बांट सकें, कोई नहीं जिसके साथ वो खुशियां बांट सकें, वो अकेली तो , टूटी हुई है मगर उम्मीदें नहीं छोड़ी है क्योंकि किसी ने उससे कहा हर इंसान एक जैसा नहीं होता'.
अब वो टूटी हुई लड़की जो मोहब्बत के नाम से अंजान थी अब वो मोहब्बत को अच्छे से जान चुकी है. वो जान चुकी है इस दुनिया में मोहब्बत तो नहीं है मगर मोहब्बत के नाम पे सिर्फ़ फरेब है क्योंकि उसके साथ सिर्फ और सिर्फ फरेब ही हुआ है. मोहब्बत ने उसे जितना ज़ख़्मी कर दिया है उतना ही उसे मज़बूत भी कर दिया है. उसे अब किसी से किसी से डर नहीं लगता ना लोगों से, ना अपनों से, ना ही किसी अंजान से, क्योंकि अब उसे ना किसी को खोने का डर है और ना ही खुद के साथ ग़लत होने का डर क्योंकि ग़लत उसके साथ हुआ है ना कि उसने किसी के साथ गलत किया है।
वो इस हद्द तक मज़बूत हो गई है कि उसे खुद के लिए लड़ना भी आता है और लोगों को जवाब भी देना आता है. उसने अबतक उम्मीद नहीं तोड़ी है क्योंकि हर इंसान एक जैसा नहीं होता, कुछ इंसान उसके जैसे भी होते हैं जो किसी के साथ गलत नहीं करते बल्कि अपने साथ हुए गलत को सही करने की फ़िराक में वो किसी और के साथ गलत नहीं करते।
वो मोहब्बत के नाम से अंजान लड़की खुश भी रहती है, रोना आता है तो रो भी लेती है, लड़ना होता है तो लड़ भी लेती है, उसे गलत नहीं बर्दाश्त, ना खुद के साथ ना किसी और के साथ वो लड़की अब वैसे तो नहीं रही जैसे पहले थी, वो अब ऐसी हो चुकी है जैसा लोग सोचते हैं, "ग़लत" अगर लोग सोचते हैं कि वो लड़की ग़लत है तो मैं गर्व से कहूँगी " ग़लत ही सही वो लड़की जिसने कभी किसी के साथ गलत तो नहीं किया पर गलत कहलाई गई"
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