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Reality of Lucknow Hip Hop Rap scene

कहते हैं कलाकार की भूख अपनी कला का प्रदर्शन दिखाने के लिए इस क़दर उछाल मारती है जैसे एक बच्चा भूखे होने पर माँ के दूध के लिए तड़पता है। आज कई कलाकार हमें ऐसे देखने को मिलते है जिन्हें स्टेज नहीं मिलता है तो वो सड़कों पर निकलकर अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। इसमें वरुण दागर एक ऐसे उधारण हैं जो उन सभी उभरते हुए कलाकारों को प्रेरित करते है जिनके पास ना कोई AUDIENCE है और ना ही कोई संगीत उपकरण। ऐसा नहीं है कि वरुण दागर के पास कुछ है नहीं, उनके पास आडियन्स भी है उनके पास म्यूजिक उपकरण भी लेकिन सड़कों पर अपनी कला को प्रस्तुत करना उन्हें हर दिन एक कहानी, एक नए चैलेंज से रूबरू कराता है। आज हम उनके बारें में नहीं बल्कि लखनऊ म्यूजिक सीन के बारें में बात करेंगे।  बात पिछले साल की है जब मैंने अपना यूट्यूब चैनल शुरू किया जिसकी वजह थी बेरोज़गारी। हाँ मेरे पास कोई जॉब नहीं थी मैं बोर हो रही थी और मुझे चुल थी कुछ करने की। फिर कंटैंट की तलाश में मैंने लखनऊ की सड़कों पर ख़ाक मारना शुरू कर दिया। इसी कंटैंट की तलाश में मुझे पहली बार सड़क पर एक कलाकार बसकिंग करते हुए दिखा। जिसका नाम था यश अगरवाल, शायद बसकिंग का उस
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sukoon

Kabhi kabhi dil chahta hai ki bus is duniya me itni gumnam ho jau ki kisi se koi vasta ya ummid ki gunjaish hi na mehsus ho. Zindagi itni azab jaisi us waqt sbse xyda lgne lgti hai jab aap apne liye hue faisle par afsos karte hai. Jab jab kisi se koi ummid koi rishta kayam karne ki koshish ki tb tb wo ummid wo rishta mahaj sirf wqti bate jaisi nazar aati hai. Sirf wqt ka akelapan dur krne ke liye log is had tak acchi bate krte ki aap duniya ki buraiyon ko bhul jate hai or sirf uski har bato per yakin karna shuru kr dete hai...kisi ko koi parwah nahi hoti ki aap kis haal me hai, kis chiz se guzar rahe hai kisi ko koi fark nhi pdta hai. Log apne hi masael me itna mashgul hai ki dusre masael nazar hi nahi aate hai....bahut waqt lgta hai insan ko kisi jazbat se kisi ehsas se nikalne me mgr jab wahi ehsas wahi jazbat apka bar bar dum ghotne lge to usse behtr hai aise jazbato or ehsaso ka marjana hi behtar hai....or fir in ehsaso or jazbato se chhutkara pane ke liye insan ek nahi kai gunah m

कहानी मिडल क्लास फ़ादर की, जो है बाज़ीगर

'मिडल क्लास फादर' एक ऐसा फादर जो अपने बच्चों को उस लेवल के लिए तैयार करने की हर वो मुमकिन कोशिश करता है जो उसे उसकी कामयाबी तक ना पहुंचा सकी। वजह फिर चाहें जो भी हो उनकी नामकामयाबी का मगर अपने बच्चों को अच्छे स्कूल, अच्छी सोसाइटी, एक बेहतर फ्यूचर देने के लिए अपनी हर पूरी कोशिश करते हैं।  कुछ फादर ऐसे होते है जो अपने बच्चों के लिए जो करना पड़े वो करते है फिर गलत हो या सही। कुछ फादर अपने उसूलों के पक्के होते हैं। कुछ फादर्स बच्चों की नज़र में मिलिनीयर होते है और कुछ फादर्स इतने ईमानदार और सीधे होते है कि उनके लिये काम बस उतना ही ज़रूरी है जिससे की दो वक्त की रोटी और जीने के लिए सांसे। उनके लिए ज़िन्दगी में आगे बढ़ना शायद कोई मायने नहीं रखता, उनके लिए जैसा चल रहा वैसा चलने दो वाला प्रोसेस होता है। हर पिता की अपनी एक कहानी होती है कि वो ज़िन्दगी में आगे कैसे बढ़ें है, कैसे उन्होंने वो मुकाम हासिल किया। कैसे उन्होंने ज़िन्दगी को बेहतर बनाया।  मेरे पापा इनमें से बिल्कुल नहीं है जिनके पास कोई कहानी हो जिंदगी में के किसी मुकाम को हासिल करने के लिए। लेकिन आज उनके लिए ' 'फादर

मीडिया संस्था की प्रक्रिया और उनसे जुड़े एम्प्लॉय के हालात

आज तक ना जाने क्यों मुझे मीडिया फील्ड की प्रक्रिया समझ ही नही आती है। इस फील्ड का जितना बोल बाला बाहर से दिखाई देता है उतना अंदर से नज़र क्यों नहीं आता। बाकी फील्ड के मुक़ाबले अगर मीडिया फील्ड की तुलना की जाए तो ये उतनी मुझे उतनी बेहतर नहीं दिखाई दी।  जहां शुरुआती दौर में कोई अन्य संगठन अपने न्यू एम्प्लॉय को बाकायदा अच्छी सैलरी के साथ अच्छी ट्रेनिंग प्रोवाइड कराता है वहीं मीडिया फील्ड अच्छी सैलेरी तो छोड़िए ट्रेनिंग के नाम पर उसे यूँही कंपनी में छोड़ दिया जाता है। अगर उस शख्स में काबिलियत है तो वो देखते दिखाते सीख सीखा जाता है और नही है तो उसका करियर इस फील्ड के लिए फिर तो बर्बाद समझो...अक्सर ज़्यादातर इस फील्ड से जुड़े लोग अपनी फील्ड बदल लेते है पता है क्यों ? क्योंकि उन्हें वो ट्रेनिंग नहीं दी जाती है जो दूसरी कंपनिया अपने एम्प्लॉय को प्रदान करती है। कुछ इस वजह से भी अपनी फील्ड बदल देते है क्योंकि जो उस काबिल होते है उन्हें उनकी मेहनत के अनुसार मेहनताना नहीं दिया जाता। इसलिए तंग आकर वो उस फील्ड में चले जाते जहां उनका मन तो नहीं होता मगर उनकी मेहनत अनुसार मेहनताना मिल ही जाता है

Does feelings matter when you intimate with someone

What is feelings? I really didn't know what is it. But when I understood the feelings towards someone it's actually happened. No matter how good he or she is but when feelings doest match u can't explore your lovable personality. Whenever you like someone either you like that person at the same time or you like after some time.or maybe you never like it.  For eg: When we go shopping without any plans and we don't know what to take and what not, then we suddenly see something and like that particular thing.  But at that time we do not think about quality. But on the other hand when we go shopping for planning what to buy and what not, we often do not get that thing.  Sometimes even after struggling, we get that thing but we dont get that quality what we want.  That's why we often get confused about what is good or what is bad. What should we do when we confused between right or wrong things: Just like this, the same thing happens with our life. Th

Friend with Benefit

Sunne me kitna negative lagta hai naa or excitement bhi mgr kya hota hai is friend with benefit ka real meaning. Maine friend with benefit ko samjhane ki kafi koshish ki magar mujhe abtk samjh nhi aaya ki friend with benefit hai kya. Khair mere liye friend Wahi hai jo apki hr acche bure me sath me gussa aye to gussa dikha le, gali dene ka mann h to gariya le, hasne ka dil kare to has le, na hasne ka dil kare to ro le jo chahe kare bus bkchodi krña kbhi na kam kare or sabse khas bat in sabke sath us dost ke liye feelings hona zaruri hai.  Aajkal kisi dost ke liye ya kisi partner ke liye shayad hi feelings dekhne ko mile qki hamare aas pas sirf or sirf jhute log hai jhuti Vibes ya fir yu kah le ki dikhawe ki dosti, dikhawe ka pyr, dikhawe ka rahan sahan sb kuch dikhawa sirf isliye taki hmara ek alg hi status logo ke bich dekhne ko mile. Kuch log is attitude ko cool bhi samjhte hai magar mujhe is dikhawe or jhute rishton ke piche hamesha hi compromise, agreement ya fir mjburi jaisi feelin

how parents to prepare our girl for marriage

mujhe samjh nahi ata ki parents aksar ladkiyo ke liye itna pareshan kyu rahte hai specially tab jb wo us age me ati hai ki use duniya samjhni shuru hi ki hoti hai, jaha use duniya dekhne ki umar hoti hai, azad hoker fizao me chillane ka mann karta waha use rishton me bandhne ki baat kyu krne lgte hai. Ldkiyo ko shadi ke liye aise taiyar kiya jata hai jaise ki sb kuch shadi hi ho. Rishte ke liye photos to aise aise dikhaye jate hai jaise ki uske liye ladke nhi bus murgi halal karne ke liye ek kasai chahiye. Fir agar koi ladki ldke ko reject krti hai to uspe ungliyan uthani shuru ho jati hai, use ye ehsas dilaya jata hai ki sb kuch life me perfect nahi milta kuch na kuch to sacrifice karna hi padta hai. Mujhe samjh nhi aata why always girls sacrifice her dream her opinion her way of styles. Ye sare sacrifices ke tabu ladko pe kyu nahi lagte unhen kyu nahi sikhaya ya btaya jata hai ki sacrifice wo bhi kr skte hai. I know har koi perfect nhi hota hame perfect banana pdta hai bt my question