सोशल मीडिया इस क़दर आजकल लोगों की ज़िंदगी में शामिल हो चुकी है जिसका सबसे ज़्यादा असर ये देखा जा रहा है लोगों गुमराह होते जा रहे हैं, लोगों में नेगेटीव विचार इतने ज़्यादा पनपने लगे हैं कि वो खुद भी नेगेटिव होते जा रहे हैं और अपने सोशल मीडिया के ज़रिए भी कई लोगों की सोच को नेगेटिव कर रहें हैं। फिर चाहें वो व्यक्तिगत इंसान का मन हो या फिर किसी गलत खबरों का फैलना इन सबका असर लोगों में दिख रहा है। ये ऐसा शायद इसलिए भी हो रहा है क्योंकि या तो लोग इन्हें समझ नहीं पाते या फिर इनके पास कोई सुनने वाला है ही नही शायद अधिकतर लोग अपनी उस नेगेटिव सोच को सोशल मीडिया के ज़रिए कहते हैं। मैं ये नही कह रही कि वो लोग गलत है या फिर ऐसे लोगों को सोशल मीडिया पर नहीं होना चाहिए, लोगों की बातों से आप समझ सकते है कौन किन हालातों से गुज़र रहा है। इसलिए जरूरी है कि वक्त रहते सोशल मीडिया के बजाए उस इंसान की असल जिंदगी में कोई उससे बात करें, उसकी बातों को समझे और उसे उसकी उस नेगेटिव सोच से ओवरकम कर सकें उसके दिमाग में जो बातें अटक गई जो कि उसे नेगेटिव माइंड को बढ़ावा दे रही है उसे कंट्रोल कर सके। इससे पहले की उसकी इस कमज़ोरी का फायदा कोई अन्य इंसान जो कि उसका अपना नही है , वो उसकी जिंदगी में शामिल होकर उसे कंट्रोल करने लगे। वो शख्स अपने नेगेटिव सोच इसीलिए सोशल मीडिया पर ज़ाहिर करता है क्योंकि उसकी असल दुनिया में उसे सुनना वाला कोई नही है और ना ही उसके पास इतने पैसे है कि वो एक psycologist से सलाह ले सकें। सोशल मीडिया पर सिर्फ ऐसे ही लोग नही है और भी भिन्न भिन्न प्रकार के प्रजाति मिलेंगे जैसे कि भक्त, मुल्ले, हवसी, दिलजले, दिलरुबा, दिखावदार और ये सब कहीं ना कहीं ज़ेहनी मरीज़ है जिसे उनके अपने अनदेखा कर देते है और उन्हें कोई भी सही सलाह नही देता जिसका नतीजा आप सबके सामने ज़ाहिर हो जाता है और उनकी इस ज़हनी मर्ज का फायदा उठाते है वो लोग जो अपने तो नही होते पर उनके अपने बन के उनकी कंधो पर बंदूक रख के चलाते है इसलिए कसूरवार ये नही है, ये तो बस इस्तेमाल किये जाते हैं।
mujhe samjh nahi ata ki parents aksar ladkiyo ke liye itna pareshan kyu rahte hai specially tab jb wo us age me ati hai ki use duniya samjhni shuru hi ki hoti hai, jaha use duniya dekhne ki umar hoti hai, azad hoker fizao me chillane ka mann karta waha use rishton me bandhne ki baat kyu krne lgte hai. Ldkiyo ko shadi ke liye aise taiyar kiya jata hai jaise ki sb kuch shadi hi ho. Rishte ke liye photos to aise aise dikhaye jate hai jaise ki uske liye ladke nhi bus murgi halal karne ke liye ek kasai chahiye. Fir agar koi ladki ldke ko reject krti hai to uspe ungliyan uthani shuru ho jati hai, use ye ehsas dilaya jata hai ki sb kuch life me perfect nahi milta kuch na kuch to sacrifice karna hi padta hai. Mujhe samjh nhi aata why always girls sacrifice her dream her opinion her way of styles. Ye sare sacrifices ke tabu ladko pe kyu nahi lagte unhen kyu nahi sikhaya ya btaya jata hai ki sacrifice wo bhi kr skte hai. I know har koi perfect nhi hota hame perfect banana pdta hai bt my question...
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Kept it up