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मौत और आलोचना

मौत का फरिश्ता घूम रहा है शहर में, कब कौन आ जाए उसकी चपेट में। घरों में बैठ गए है सब इस खौफ़नाक मंज़र से, जान जानी है एक एक करके इस डर से।  ऐसे मंज़र में भी कुछ लोग मना रहे हैं किसी की मौत का जश्न,  अरे जब जाना है तुमको भी तो फिर कैसा है ये जश्न। जानती हुँ नहीं सुधरेंगे ये लोग, फिर इनको कुछ कहना ही है बेकार स्थिति ही इनकी दिमाग की जो हो गई है बेकार। नाराज़ तो खुदा सबसे ही है, फिर क्यों उठाते हो ऊँगली किसी और पर, वो सब देख रहा है अब तो देखों खुद का दामन को झाड़कर। शमशान और क़ब्रिस्तान आबाद हो रहे है धीरे-धीरे, ज़िंदा लोग शहर को खाली कर रहें है धीरे-धीरे। बचे कुछ दिन है अपने, लोगों की भलाई में संवार दो, खुदा का डर है अगर तो लोगों का बुरा करना छोड़ दो।

सोशल मीडिया पर भिन्न भिन्न प्रकार के प्रजाति

सोशल मीडिया इस क़दर आजकल लोगों की ज़िंदगी में शामिल हो चुकी है जिसका सबसे ज़्यादा असर ये देखा जा रहा है लोगों गुमराह होते जा रहे हैं, लोगों में नेगेटीव विचार इतने ज़्यादा पनपने लगे हैं कि वो खुद भी नेगेटिव होते जा रहे हैं और अपने सोशल मीडिया के ज़रिए भी कई लोगों की सोच को नेगेटिव कर रहें हैं। फिर चाहें वो व्यक्तिगत इंसान का मन हो या फिर किसी गलत खबरों का फैलना इन सबका असर लोगों में दिख रहा है। ये ऐसा शायद इसलिए भी हो रहा है क्योंकि या तो लोग इन्हें समझ नहीं पाते या फिर इनके पास कोई सुनने वाला है ही नही शायद अधिकतर लोग अपनी उस नेगेटिव सोच को सोशल मीडिया के ज़रिए कहते हैं। मैं ये नही कह रही कि वो लोग गलत है या फिर ऐसे लोगों को सोशल मीडिया पर नहीं होना चाहिए, लोगों की बातों से आप समझ सकते है कौन किन हालातों से गुज़र रहा है। इसलिए जरूरी है कि वक्त रहते सोशल मीडिया के बजाए उस इंसान की असल जिंदगी में कोई उससे बात करें, उसकी बातों को समझे और उसे उसकी उस नेगेटिव सोच से ओवरकम कर सकें उसके दिमाग में जो बातें अटक गई जो कि उसे नेगेटिव माइंड को बढ़ावा दे रही है उसे कंट्रोल कर सके। इससे पहले की

ग़लत हुआ फिर वो ग़लत कहलाई गई

                       " ग़लत हुआ फिर वो ग़लत कहलाई गई"   मैं जब भी उदास होती हूँ  तो रो लेती हूँ या फिर लिख लेती है. मन तो काफी दिनों से उदास है पर आज लिखने का दिल का कर रहा है. अपने मन में भरे हुए जज़्बातों को अब अपने अंदर समेट नहीं पा रही हूं,,.... जज़्बात तो मन में बहुत है मगर उन जज़्बातों के साथ सवाल भी उससे कहीं ज़्यादा हैं। दिल में भरे एहसास के सैलाबों को आज मैं अपने अल्फ़ाज़ों से बयां बकर दूंगी।  आज सिर्फ़ अपने ज़ज़्बात ही बयां करुँगी सवाल किसी और दिन करुँगी।  एक लड़की जब मोहब्बत के नाम से अनजान होती हैं तब ये इस दुनिया के कुछ नामर्द ऐसे होते हैं जो मोहब्बत से अनजान उस लड़की को ये बताते हैं की मोहब्बत क्या है? मोहब्बत कैसे की जाती है? मोहब्बत क्यों की जाती है? मगर जब वहीं लड़की मोहब्बत का सबक़ सीख जाती है उसे ये एतबार दिला दिया जाता है कि मोहब्बत ही सबकुछ है तो क्यों फिर एक मुक़ाम ऐसा आता है जब वही शख़्स (जिसने मोहब्बत के क़सीदे और सबक सिखाए) उसके एतबार को इस तरह से तोड़ता है कि फिर वो एतबार लफ्ज़ को भूल जाती है.  उस लड़की का एतबार तो टूट जाता है मगर उम्मीद नहीं क्यों क्योंकि उसे लोगो

हिंदी का दर्द नहीं समझ सकता कोई

न जाने किस कोने में चुप-चाप सी रहती है वो, बोलती तो है मगर कभी-कभी चुप सी हो जाती है वो, इस युग के लोगों ने उसे कोई अहमियत ही नहीं दी और न ही देना चाहती है क्यूंकि वो आपके क्लास को कम कर देती, आपके दर्जे और आपकी वैल्यू को कम कर देती है, कभी-कभी वो बहुत बोलती, बेइंतेहा बोलती है, क्यूंकि वो खुद को भारत में आज़ाद महसूस करती हैं मगर वो उस वक्त चुप हो जाती है जब ये अंग्रेजी आकर टिपिर-टिपिर करने लगती है , और खुद को बहुत महत्वपूर्ण बताती है. अब आप सोच रहें होंगे की आखिर वो कौन है तो  जो अपने देश में आजाद होकर भी कैद हो जाती है. तो आपको बता देती हूँ कि वो कोई और नहीं बल्कि नहीं हमारी मात्र भाषा हिंदी है. जो अपना दर्द बयां कर रही  हैं.  हिंदी कैसे शर्मसार करती है--   आपने दर्द को बयां करते हुए हिंदी ने कुछ ये बताया कि हिंदी सच में बहुत अलग है उसकी सोच, उसकी सज्जा, उसकी अहमियत , उसके शब्द मगर ये कंपनी ये बड़े लोग, ये क्लास वाले लोग उसे नहीं समझ सकते, क्यों? क्यूंकि हिंदी में बोलना उन्हे अखरता है, हिंदी बोलन उनके स्टेटस को सूट नहीं करता, हिंदी उन्हें शर्मसार कर देती है. सिर्फ इसलिय क्यूंकि

माँ सोशल मीडिया पर है मगर घरों में नहीं... मदर डे स्पेशल

14 मई का दिन हर माँ के लिए सबसे खास दिन बन जाता है और वो भी तब जब इस माँ के लिए साल में एक बार भी छुट्टी नहीं होती. आज के इस अवसर पर सभी लोग सोशल मीडिया पर और घरों में माँ के प्यार और माँ के सब्र को बहुत ही अहमियत दे रहें हैं. कोई घरों में माँ के लिए सेलिब्रेट कर रहा हैं तो उनके लिए सरप्राइज प्लान कर रहा है. हर कोई अपनी माँ को आज स्पेशल फील करने के लिए कुछ ना कुछ करने की सोच रहा है. करे भी क्यों ना माँ होती ही है इतनी स्पेशल. http://aapkikhabar.com/17689/Mother-is-on-the-social-media-but-not-in-the-house पुरे साल एक यही तो दिन आता है जब हर बच्चे को एहसास  होता है कि माँ क्या है. लेकिन वहीँ कुछ  लोगों का मानना है कि सोशल मीडिया पर माँ के प्रति जो प्यार हम प्रकट कर रहें है वो सब महज एक दिखावा ही . एक बार मान भी लिया जाए की ये सब एक दिखावा है. इस दिखावे के ज़रिये ही सही कम से कम उन लोगों को ये तो समझ आएगा जो माँ की एहमियत को नहीं समझते, माँ के प्यार को नहीं समझते, कम से कम वो लोग  सोशल मीडिया पर दिखावे वाले प्यार को देखकर ही  अपने माँ के प्रति कुछ तो एहसास हुआ होगा शायद इस दिखावे

india ki bari ayi h

@@@अब इंडिया कि बारी आई है @@@ सिंधू और साक्षी के जीतने के बाद ये तो साबित ही हो गया कि बेटियां  हर बुरे वक्त मे अपने घर कि इज़्ज़त बचाती है। रियो ओलंपिक्स मे 125 करोड़ भारतीय टीम मे से अभी तक किसी ने भी सेमी फाइनल ये जगह नहीं बनाइ है लेकिन सिंधू ने सेमिफाइनल मे अपनी जगह बनाई और साक्शी ने कांस्य पदक जीतकर देश का सर गर्व से ऊँचा कर दिया है। इन दोनों खिलाड़ियों के जीतने के बाद हर भारतीय  मे जोश कि लहर की दौड़ पड़ी है।  जहां हार कि वजह से लोगों मे निराशा थी वही अब खिलाड़ियो मे जीतने का जज़्बा पैदा हो गया है। बेटियां हर बार अपने घर, अपने रिशतेदार, अपने समाज, और  देश कि इज़्ज़त बनती भी है  और बचाती भी है। साक्षी और सिंधू ने भी इस बार अपने देश कि इज़्ज़त बचाई है।       
आज मै किसी काम से पुराने लखनऊ कि तरफ़ चल पड़ी और फिर कुछ देर पैदल चली रास्ते मे एक छोटा बच्चा मिला वो अपनी मौज मस्ती मे सड़क के किनारे चला जा रहा था। हम लोगे ने उस बच्चे को  मज़ाक मे  डराने लगे कि "रुको अकेले जा रहे हो ना, तुमको पकड़ के घर ले चलते है" वो थोड़ा सा डरके आगे बढ़ जाता है और फिर वो सड़क को क्रॅास करने लगता है।  मगर वो बहुत ही छोटा था और गाड़ियो को बिना देखे आगे बढ़ने लगा , फिर मैने उसका हाथ पकड़कर उसे सड़क पार कराया ,ये सोचकर कि कही कोई दुर्घटना न हो जाए। जब मैने उसे सड़क पार करा दिया तो बच्चा मुस्कुरा कर मेरी तरफ़ देखा और फिर मै भी मुस्कुरा कर आगे कि तरफ़ चल पड़ी । कुछ दुर आगे चली ही थी कि एक और छोटा बच्चा मिला बोला भूक लगी कुछ पैसे दे दो , हम लोग के पास अंगूर थे तो हमलोग ने उसे खाने के लिये अंगूर दे दिये । उस समय ये एहसास हुआ कि सरकार अगर फालतू के मुददो पे बहस करने के बजाए इन भूखे बच्चो के बारे मे कुछ सोचती तो शायद ये भूखे बच्चे सड़क पे भीख न मांग रहे होते और आज इस देश मे कोई बचचो से भीख न मगवाता।